वैज्ञानिक हंस क्रिश्चियन ग्राम की जीवनी Biography of scientist Hans Christian gram in hindi

हैंस क्रिश्चियन ग्रैम (Hans Christian Gram)  ने 1884 में एक जर्नल में ग्रैम-पॉज़िटिव (Gram-positive) और ग्रैम नेगेटिव (Gram-negative) नाम से अपनी खोज को पब्लिश किया. साथ ही बताया कि ग्रैम पॉज़िटिव बैक्टिरिया (Gram-Positive Bacteria) माइक्रोस्कोप (Microscope) से पर्पल कलर का दिखा, क्योंकि सेल की लेयर काफी मोटी थी जिस वजह से वो घुल नहीं पाई. वहीं, ग्रैम नेगेटिव बैक्टिरिया (Gram-Negative Bacteria) की सेल काफी पतले थे, जिस वजह से वो घुल पाए.

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क्रिस्टियान ग्राम का जन्म 13 सितंबर 1853 में डेनमार्क में हुआ था। उनकी मौत के आठ दशक बाद तक ग्राम मेथड का प्रयोग किया जाता है। आज भी माइक्रोबयॉलजी की दुनिया में उनके योगदान को लोग याद करते हैं। अपनी एमडी पूरी करने के बाद उन्होंने शहर के म्यूनिसिपल हॉस्पिटल में रेजिडेंट फिजीशियन के तौर पर काम किया।
उन्होंने माइक्रोस्कोप से बैक्टीरिया (Bacteria) का पता लगाने वाली खास तकनीक की खोज 1884 में की थी.हैंस क्रिश्चियन ग्रैम (Hans Christian Gram) ने साल 1878 में कोपेनहैगन यूनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ मेडिसिन की डिग्री हासिल की. इसके बाद वो बैक्टिरियोलॉजी और फार्मालॉजी की पढ़ाई करने यूरोप चले गए. बर्लिन की माइक्रोबायोजिल्ट लैब में काम करते हुए उन्होंने नोटिस किया कि बैक्टिरिया के धब्बे को क्रिस्टल वॉयलेट स्टेन (आयोडीन सॉल्यूशन और ऑर्गेनिक सोलवेंट) में मिलाने से अलग-अलग सैंपल में अलग स्ट्रक्चर और बायोकेमिकल फंक्शन मिले. 
जब क्रिस्टियान माइक्रोबयॉलजिस्ट कार्ल फ्राइडलैंडर की बर्लिन लैबोरेटरी में काम किया करते थे  उस वक्त उन्होंने  'ग्राम स्टेन' डवलेप किया था। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिक के अनुसार ग्राम स्टेन दरअसल, किसी  बैक्टीरिया की पहचान करने और उसके गुण धर्म पता लगाने का वैज्ञानिक तरीका है। 
इसके बाद अपनी यूरोप की यात्रा के दौरान कई क्षेत्रों में काम करते हुए  बैक्टीरियॉलजी और फार्मालजी निपुणता हासिल की। 1923 में उन्होंने अपने काम से रिटायरमेंट ले लिया और 1938 में उनकी मृत्यु हो गई। 
यह कैसे काम करता है ?
ग्राम स्टेन तरीके में बैक्टीरिया के धब्बे पर वॉइलट डाई डाली जाती है। इसके बाद इसे ऑर्गेनिक सॉल्वेन्ट आयोडीन सलूशन से साफ किया जाता है। इनमें सो जो मोटे सेल वाले बैक्टीरिया होते हैं वह पर्पल कलर के ही रहते हैं और उन्हें ही ग्राम पॉजिटिव कहा जाता है। जबकि जो बैक्टीरिया कमजोर और पतले रहते हैं वह खत्म हो जाते है। 

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