जिद्द और जूनून की कहानी
आज जिद्द और जूनून की बात हो रही है क्युकि कुछ लोग अपनी जिद्द और जूनून के कारण ही प्रसिद्ध हो जाते है कोई इनको पागल कहता है तो कोई सनकी फिर भी इनके जिद्द ने ऐसा कुछ करा है जो दुसरो के काम आयी है इतिहास के पन्नो में बहुत से लोग है जिन्होने अपनी जिद में सफलता पाई है ऐसे बहुत से नाम है लेकिन आज बात माउंटेन मेन द्दशरत माझी की है इन्होने केवल एक हथोड़ा और छेनी लेकर इन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली। 22 वर्षों परिश्रम के बाद, दशरथ के बनायी सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 किमी से 15 किलोमीटर कर दिया।
इनको आज इसी काम द्वारा मांझी 'माउंटेन मैन' के रूप में ख्याति मिली । उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्ताव रखा।
इनका जीवन काफी संघर्ष से गुजरा ये काफी काम उम्र में घर से भाग गए थे और कोयला खान में काम किया करते थे
दशरथ मांझी एक बेहद पिछड़े इलाके से आते थे और दलित जाति के थे। शुरुआती जीवन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक मांगने के लिए संघर्ष करना पड़ा। वे जिस गांव में रहते थे वहां से पास के कस्बे जाने के लिए एक पूरा पहाड़ (गहलोर पर्वत) पार करना पड़ता था। उनके गांव में उन दिनों न बिजली थी, न पानी। ऐसे में छोटी से छोटी जरूरत के लिए उस पूरे पहाड़ को या तो पार करना पड़ता था या उसका चक्कर लगाकर जाना पड़ता था। उन्होंने फाल्गुनी देवी से शादी की। दशरथ मांझी को गहलौर पहाड़ काटकर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुआ जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी की मौत दवाइयों के अभाव में हो गई, क्योंकि बाजार दूर था। समय पर दवा नहीं मिल सकी। यह बात उनके मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले दम पर पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकलेगा और अत्री व वजी़रगंज की दूरी को कम करेगा।
इनके संघर्ष को फ़िल्मी पर्दे पर भी उतरा गया है इनका संघर्ष आज सभी युवाओ को प्रेरित करता की अपने लक्ष्य के प्रति ध्यान केंद्रित हो तो कामयाबी देर से ही सही मिलती जरूर मिलती है
इन्होने कहा था , "जब मैंने पहाड़ी तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा लेकिन इसने मेरे निश्चय को और मजबूत किया।" दुनिया कुछ भी कहे अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहना चाहिए |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें