महात्मा गाँधी के जीवन उनके परभिक जीवन के बारे में और दक्षिण अफ्रीका आंदोलनों के बारे में जानने के लिए हमने एक अलग पोस्ट बनायीं हिअ जिसको आप महात्मा गाँधी की जीवनी में पढ़ सकते है आज में महात्मा गाँधी का भारत आगमन के बारे में बतायेगे। बात की जा चुकी उनका जन्म २ अक्टूबर 1861 में गुजरत के पोरबंदर में हुआ था उनका पुरा नाम मोहन दास कर्मचंद गाँधी था उनका जीवन में संघर्ष की शुरुआत दक्षिण अफ्रीका से शुरू हुई उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ होने वाले नस्ल,रंग,जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई अहिंसत्मक आंदोलन चलाये जिसके चलते उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में 20 साल अपने जीवन के गुजरे और वह 1914 में भारत लोट आए यहाँ उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया
→ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गाँधी का योगदान :
1914 में दक्षिण अफ्रीका से भारत आये उन्होंने भारतीय राष्टीय कांग्रेस के अधिवेशनो में अपने विचार व्यक्त किये उनके विचार भारतीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले पर ही आधारित थे जो एक सम्मनित नेता थे उन्होंने भारत में भी गरीबी ,भूख और भारतीयों के शोषण को कम करने के लिए आंदोलन चलाये।
गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1917 में एक सत्याग्रह हुआ।इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। हजारों भूमिहीन मजदूर एवं गरीब किसान खाद्यान के बजाय नील और अन्य नकदी फसलों की खेती करने के लिये वाध्य हो गये थे। वहाँ पर नील की खेती करने वाले किसानों पर बहुत अत्याचार हो रहा था। अंग्रेजों की ओर से खूब शोषण हो रहा था। ऊपर से कुछ बगान मालिक भी जुल्म ढा रहे थे। महात्मा गाँधी ने अप्रैल 1917 में राजकुमार शुक्ला के निमंत्रण पर बिहार के चम्पारन के नील कृषको की स्थिति का जायजा लिया और उनकी समस्या जाने के बाद आंदोलन शुरू किया।
वही खेड़ा आंदोलन गुजरात में शुरू होआ यह भी किसानो की समस्या को लेकर था और यही पर सरदार वल्बभाई पटेल की मुलकात गाँधी जी से हुई सन् 1918 ई. में गुजरात जिले की पूरे साल की फसल मारी गई। किसानों की दृष्टि में फसल चौथाई भी नहीं हुई थी। स्थिति को देखते हुए लगान की माफी होनी चाहिए थी, पर सरकारी अधिकारी किसानों की इस बात को सुनने को तैयार न थे। किसानों की जब सारी प्रार्थनाएँ निष्फल हो गई तब महात्मा गांधी ने उन्हें सत्याग्रह करने की सलाह दी और लोगों से स्वयंसेवक और कार्यकर्ता बनने की अपील की|
गांधी जी ने असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार को अंग्रेजों के खिलाफ़ शस्त्र के रूप में उपयोग किया। पंजाब में अंग्रेजी फोजों द्वारा भारतीयों पर जलियावांला नरसंहार जिसे अमृतसर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है ने देश को भारी आघात पहुंचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी। गांधीजी ने ब्रिटिश राज तथा भारतीयों द्वारा प्रतिकारात्मक रवैया दोनों की की। उन्होंने ब्रिटिश नागरिकों तथा दंगों के शिकार लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की तथा पार्टी के आरंभिक विरोध के बाद दंगों की भंर्त्सना की। गांधी जी के भावनात्मक भाषण के बाद अपने सिद्धांत की वकालत की कि सभी हिंसा और बुराई को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है। किंतु ऐसा इस नरसंहार और उसके बाद हुई हिंसा से गांधी जी ने अपना मन संपूर्ण सरकार आर भारतीय सरकार के कब्जे वाली संस्थाओं पर संपूर्ण नियंत्रण लाने पर केंद्रित था जो जल्दी ही स्वराज अथवा संपूर्ण व्यक्तिगत, आध्यात्मिक एवं राजनैतिक आजादी में बदलने वाला था। उन्होने असयोग आंदोलन के साथ खिलफत आंदोलन को जोड़ दिया ताकि आंदोलन में विस्तार हो सके।
दांडी मार्च जिसे नमक मार्च, दांडी सत्याग्रह के रूप में भी जाना जाता है जो इसवी सन् 1930 में महात्मा गांधी के द्वारा अंग्रेज सरकार के नमक के ऊपर कर लगाने के कानून के विरुद्ध किया गया सविनय कानून भंग कार्यक्रम था। ये ऐतिहासिक सत्याग्रह कार्यक्रम गाँधीजी समेत ७८ लोगों के द्वारा अहमदाबाद साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गाँव दांडी तक पैदल यात्रा करके १२ मार्च १९३० को नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून का भंग किया गया था। भारत में अंग्रेजों के शाशनकाल के समय नमक उत्पादन और विक्रय के ऊपर बड़ी मात्रा में कर लगा दिया था और नमक जीवन जरूरी चीज होने के कारण भारतवासियों को इस कानून से मुक्त करने और अपना अधिकार दिलवाने हेतु ये सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम आयोजित किया गया था। कानून भंग करने के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियाँ खाई थी परंतु पीछे नहीं मुड़े थे। 1930 को गाँधी जी ने इस आंदोलन का चालू किया। इस आंदोलन में लोगों ने गाँधी के साथ पैदल यात्रा की और जो नमक पर कर लगाया था। उसका विरोध किया । इस आंदोलन में कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जैसे-राजगोपालचारी,नहेरू, आदि। ये आंदोलन पूरे एक साल चला और 1931 को गांधी-इर्विन समझौते से खत्म हो गया।
द्वितीय विश्व युद्ध 1931 में जब छिड़ने नाजी जर्मनी आक्रमण पोलैंड.आरंभ में गांधी जी ने अंग्रेजों के प्रयासों को अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने का पक्ष लिया किंतु दूसरे कांग्रेस के नेताओं ने युद्ध में जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना इसमें एकतरफा शामिल किए जाने का विरोध किया। कांग्रेस के सभी चयनित सदस्यों ने सामूहिक तौर पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। लंबी चर्चा के बाद, गांधी ने घोषणा की कि जब स्वयं भारत को आजादी से इंकार किया गया हो तब लोकतांत्रिक आजादी के लिए बाहर से लड़ने पर भारत किसी भी युद्ध के लिए पार्टी नहीं बनेगी। जैसे जैसे युद्ध बढता गया गांधी जी ने आजादी के लिए अपनी मांग को अंग्रेजों को भारत छोड़ो आन्दोलन नामक विधेयक देकर तीव्र कर दिया। यह गांधी तथा कांग्रेस पार्टी का सर्वाधिक स्पष्ट विद्रोह था जो भारतीय सीमा से अंग्रेजों को खदेड़ने पर लक्षित था।
महात्मा गाँधी की हत्या :
३० जनवरी, १९४८, गांधी की उस समय नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई जब वे नई दिल्ली के बिड़ला भवन (बिरला हाउस के मैदान में रात चहलकदमी कर रहे थे। गांधी का हत्यारा नाथूराम गौड़से हिन्दू राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टरपंथी हिंदु महासभा के साथ संबंध थे जिसने गांधी जी को पाकिस्तान को भुगतान करने के मुद्दे को लेकर भारत को कमजोर बनाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
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