डॉ मार्टिंग लूथर किंग जूनियर की जीवनी Dr. Martin Luther King Biography in Hindi

डॉ मार्टिंग लूथर किंग  जूनियर को  अमेरिका के  पादरी और महान नेता थे जिन्होंने  अमेरिका में नीग्रो समुदाय के प्रति होने वाले भेदभाव के विरुद्ध अहिंसात्मक आंदोलन  चलया।  इन्हे अमेरिका का गाँधी भी कहा जाता है क्यकि ये महात्मा गाँधी के  द्वारा दिखये गए अहिंसा  रस्ते पर चलते थे  इन्हे आज मानव  अधिकारों के प्रतीक के रूप में देखा जाता है दो चर्चों ने उनको सन्त के रूप में भी मान्यता प्रदान की है।
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 डॉ मार्टिंग लूथर किंग का जन्म रेवरेड मार्टिंग लूथर किंग सीनियर और अल्बर्टा विलियम्स किंग के यहां 15 जनवरी 1929 को अटलांटा में  हुआ  था. उन्होने हाई स्कूल में दाखिला लिया जिसका  नाम अफ्रीका अमेरिकी शिक्षक   बुकर टी  के नाम पर वाशिंगटन में था उन्होने स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद  मोरहॉउस कॉलेज में दाखिला लिया जो उस समय का काफी प्रसिद्ध कॉलेज था जिसमे दाखिले के लिए प्रवेष परीक्षा पास करनी होती थी लेकिन उस समय अधिकतर छात्र दतिया विश्व्युद्ध में भर्ती होना चाहते थी जिससे कॉलेज को अपनी सीटों को भरने के लिए आवेदन लेने पड़े और किंग का 15 वर्ष की आयु में,  परीक्षा उत्तीर्ण की और मोरहाउस में प्रवेश किया।  उन्होंने वहां फ्रेशमैन फुटबॉल खेला। 1947 में मोरहाउस में अपने अंतिम वर्ष से पहले, 18 वर्षीय किंग  को  मंत्रालय में प्रवेश करने के लिए चुना। 


मार्टिन लूथर किंग शुरू से ही सामाजिक काम में सक्रीय थे। सन्‌ 1955 का वर्ष उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था। क्यूंकी इसी वर्ष कोरेटा से उनका विवाह हुआ,इसी उनको अमेरिका के दक्षिणी प्रांत अल्बामा के मांटगोमरी शहर में डेक्सटर एवेन्यू बॅपटिस्ट चर्च में प्रवचन देने बुलाया गया और इसी वर्ष मॉटगोमरी की सार्वजनिक बसों में काले-गोरे के भेद के विरुद्ध एक महिला श्रीमती रोज पार्क्स ने गिरफ्तारी दी। इसके बाद ही डॉ॰ किंग ने प्रसिद्ध बस आंदोलन चलाया।



381 दिन तक इस सत्याग्रही आंदोलन के बाद अमेरिकी बसों में काळा गोरे यात्रियों के लिए अलग अलग सीट रखने का प्रवधान ख़त्म कर दिया गया बाद में उनोने धार्मिक नेताओ की मदत से सामान नागरिक कानून आंदोलन अमेरिका के उतरी भाग में भी फैलाया। 



उन्हे  1964 में विश्व शांति के लिए सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया  कई अमेरिकी विश्विधलयो ने उन्हें मंद उपाध्या दी धार्मिक व सामाजिक सस्थाओ ने उन्हें मेडल प्रदान किये 'टाइम ' पत्रिका ने उन्हें 1963 का में ऑफ़ थे ईयर चुना वे गाँधी जी के  अहिंसक आंदोलनों से बहुत प्रभावित थे 



सन 1959 में भारत की यात्रा की और उन्होंने कई अकबरो में आलेख लिखे स्ट्राइड टोवरर्ड 1958 तथा व्हाय वि केन नॉट वेट १९६४ में उनके द्वारा लिखी गयी किताब है उन्होंने  1957 साउथ क्रिश्चियन लीडरशिप कॉन्फ्रेंस की स्थापना की। डॉ॰ किंग की प्रिय उक्ति थी- 'हम वह नहीं हैं, जो हमें होना चाहिए और हम वह नहीं हैं, जो होने वाले हैं, लेकिन खुदा का शुक्र है कि हम वह भी नहीं हैं, जो हम थे।' 4 अप्रैल 1968 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई।

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